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Saturday, July 14, 2012

सबकुछ बिकता है बेचना आना चाहिए

बाजार का नया व्याकरणः लेमन-जूस बेचने का ये भी एक ढंग है।
0 प्रशांत योगीजी,
 आपने सही कहा है कुछ लोगों को अभी तक चलना भी नहीं आया है। मगर ऐसे ही लोग हमें रास्ता दिखाने का काम कर रहे हैं। इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है कि इन मूर्खों के फरमानों पर हमारा प्रशासन और शासन दोनों चुप रहते हैं। और स्त्री संगठन भी। हमारा भारत महान है। यहां एक घंटें में औसत तीन बलात्कार होते हैं।
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0अरविंद पथिकजी,
आप की दफ्तरी जिंदगी के नर्क की काफी जानकारी मुझको है। दरअस्ल यह यातनाएं भोगने को वे सभी अभिषप्त हैं जो ईमानदारी की राह पर चलने की सनक पाल लेते हैं। फिर चाहे वो राजा हरिश्चंद्र हों या बिस्मिलजी..या अरविंद पथिक। बेईमानों को सुख रहता है कि उनको ये यातनाएं नहीं सहनी पड़तीं हैं। क्योंकि समाज का बहुसंख्य हिस्सा इन्ही से बना होता है। पहले आदर्श और उसूलों पर चलनेवाले को तकलीफ तो होती थी मगर समाज में उसकी प्रशंसा भी की जाती थी। आज ऐसे लोगों को हरामखोरों द्वारा ढ़ोंगी,पाखंडी और सनकी कहा जाने लगा है। और उसकी प्रशंसा कोई नहीं करता। हां यातनाओं की घनघोर बारिश जरूर उस पर नियमित की जाती रहती है। आज के मौसम का यही मिजाज है।

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