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Friday, August 31, 2012



बृहद भरत चरित्र महाकाव्य से कुछ प्रसंग आप तक --

वानरश्री की बात सुन, उत्तर सीय उचार।
दशरथ की मैं पुत्रवधु,श्रीराम पति हमार।।
वानरश्री की बात सुनकर सीता ने उत्तर दिया। मैं राजा दशरथ की पुत्रवधु हूँ और श्रीराम मेरे पति हैं।
सीता है मेरा शुभ नामा। जनक मेरे तात अभिरामा।।
सिय ने सर्वकथा विस्तारी। क्यों मैं वन प्रभु संग पधारी ।।

और मेरा नाम सीता है। राजा जनक मेरे पिता हैं। सीताजी ने वानरराज को सर्व कथा विस्तार से बतायी कि मैं प्रभु के संग वन में क्यों पधारी ।

सिय को हुआ पुनः संदेहा। प्रतीत नहीं यह राम स्नेहा ।।
रावण का ही वानर रूपा । वह मायावी धरि बहु रूपा ।।

सीताजी को पुनः संदेह हुआ । यह रामस्नेही प्रतीत नहीं होता है। रावण ने वानर रूप बना लिया होगा । वह दुष्ट मायावी है। नानारूप बना लेता होगा ।




प्रस्तुति --

योगेश विकास

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