गुड मार्निंग ,दोस्तों रोजाना सुबह सुबह आपको बातों के
नश्तर से लुहूलुहान करने की अपनी विकृत -कुंठित मानसिकता को परे रख आज दिल को खुश
कर देने वाली उमस में शीत पवन के झोंके सी एक घटना जो इतिहास रचेगी शेयर कर रहा
हूं।मित्रों २२ से २७ सितंबर तक दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में हो रहे विश्व
हिंदी सम्मेलन मे
जहां कई टुटपुंजिये साहित्यकार और सत्ता के गलियारों में विचरण
करने वाले माध्यम पुरूष हिंदी का भला करने के लिये जा रहे हैं वहीं कुछ नाम निराशा
के घटाटोप में आशा के कंदील है।जिनके वहां होने से आशा बंधती है कि हिंदी को उसके
समुचित मान और स्थान का संघर्ष जारी है उनमें से एक नाम है --पं० सुरेश नीरव का।
२० जून १९५० को ग्वालियर मध्य प्रदेश में जन्में पं० सुरेश
नीरव हास्यरसावतार पं० जगन्नाथ प्रसाद
चतुर्वेदी की वंश परंपरा से संबद्ध हैं आपके पिताश्री पं० दामोदर दास
चतुर्वेदी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फौज के सिपाही और आज़ादी के बाद भी
विशाल भारत जैसे हिंदी पत्रों के संपादन विभाग से संबद्ध रहे
पं० सुरेश नीरव ने छात्र जीवन में ही ओशो रजनीश की पुस्तक 'शिक्षा
में क्रांति'की भूमिका लेखन से पुस्तक भूमिका में भी साहित्य दर्शन का जो
क्रम शुरू किया था वह ४०० पुस्तकों के लेखन के साथ निरंतर जारी है।एक शिक्षक के
रूप में अपने कैरियर की शूरूआत करने वाले पं० सुरेश नीरव हिंदुस्तान टाइम्स की
प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका कादम्बिनी में ३५ वर्ष से अधिक संपादन -लेखन कर चुके
हैं।हिंदी कविता की वाचिक परंपरा के मूर्धन्य कवियों में शुमार पं० सुरेश नीरव देश
के गिने चुने सर्वश्रेष्ठ मंच संचालक हैं ।आपकी २५ पुस्तके साहित्य ,दर्शन
,व्यंग्य
आदि विधाओं की प्रकाशित हो चुकी हैं।देश -विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर
लेखन
कर रहे कुटीचक मुद्रा में राग-द्वेष से परे पं० सुरेश नीरव को
बिना किसी जोड-तोड के साउथ अफ्रीका जा रहे सरकारी प्रतिनिधि मंडल का अहम हिस्सा
बनाया जाना अभी भी सत्ता की आंखों की शर्म
शेष होने का संकेत है।मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि सत्ता की आंखों की ये
शर्म यों ही बनी रहे और पं० सुरेश नीरव जैसे और अच्छे उन साहित्यकारो -हिंदी
सेवियों को भी आगे से अपने साथ जोडे जो गांव -देहात या दिल्ली की जोड -तोड से दूर
एकांत साधना कर रहे हैं।
मित्रों अंत में एक बात और जोडना चाहता हूं कि अनगिनत सरकारी
गैरसरकारी अलंकरणों से अलंकृत पं० सुरेश नीरव देश की समस्त भाषाओं के उन्नयन को
समर्पित 'सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति'के राष्ट्रीय
अध्यक्ष हैं।डा० कुंअर बेचैन ,राजमणि श्रीवास्तव और राकेश पांडे समेत
आधा दर्जन व्यक्तित्व जो 'सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति'से
संबद्ध हैं इस सरकारी प्रतिनिधिमंडल का अहम हिस्सा हैं।
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