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Sunday, October 14, 2012

अरविंद केजरीवाल'व्यवस्था के विरूद्ध ज़रूरी और ईमानदार लडाई लड रहा है

मित्रों बहुत दिन से गंभीरता से मैने कुछ नही लिखा ।ऐसी बात नहीं कि मुद्दे नहीं थे विचार नही थे बस अन्ना आंदोलन को लेकर जो कुशंकायें मैने व्यक्त की थीं उनके सही हो जाने से दुखी था।फिर विश्व हिंदी सम्मेलन को लेकर जो भी लिखा तो कुछ मित्रों को लगा ये उन्हे लक्ष्य कर लिखा गया और कुछ ने मेरी निजी कुंठा माना ।इन सब घटनाओं से लगा कि फेसबुक गंभीर बातों का मंच नहीं,हम निकले तो थे दोस्त बनाने मगर यहां भी दुश्मन जमा कर लिये।किसी शायर ने कहा है---
मैं राहे न जाने क्या-क्या बदलता रहा
मगर साथ सेहरा तो चलता रहा,
   हो सकता है इस शेर को गलत तरह से कोट करने के लिये कोई गालिब अभी डांट लगाने के लिये नमूदार हो जाये--------
ऐसी ही बातों से घबरा कर सिर्फ बेसिर-पैर की अपनी गज़ले-कवितायें पोस्ट करता रहा हूं,कही गहरे अवसाद की मनःस्थिति में ।उस आम आदमी की मनः स्थिति में जो लोकपाल को जोकपाल और भ्रष्टाचार के विरूद्ध लडाई को कांग्रेस -बीजेपी की नूरा कुश्ती में तब्दील होते देख हतप्रभ है।आप जो बोलिये -लिखिये सुनने पढने वाला किसी न किसी पार्टी के चश्मे से ही देखेगा ।तो क्या करें--अरविंद केज़रीवाल को जो लोग खुजलीवाल कह रहे हैं, कहने दें?'कोऊ नृप होई हमइ का हानी'या फिर 'तेल देखें और तेल की धार देखें'।फेसबुक पर लाइक्स चेक करें और मस्त रहें।कल प्रातःएक मित्र ने कहा -'अरविंद केजरीवाल को यों मरने के लिये अकेला नहीं छोड देना है'।शाम को दूसरे मित्र ने कहा जो भी हो उसके साथ जैसे भी लोग हों पर यह आदमी ईमानदार है ,कांग्रेस के वज़ूद इस अकेले आदमी की तेजस्विता ने हिला दिया है।
मेरे ये दोनो मित्र कोई खोये हुये मामूली लोग नहीं हैं-पहले ने आपातकाल विरोध में जेल में एक डेढ वर्ष गुजारा तो दूसरे ने जीवन का बडा हिस्सा पत्रकारिता और साहित्य सेवा करते गुजारा।एक जेपी के साथ था तो दूसरा संजय गांधी के साथ।मित्रों ये दो विपरीत ध्रुव जब आज एक बिंदु पर आकर मिल गये हैं और घोषणा कर रहे हैं कि 'अरविंद केजरीवाल'व्यवस्था के विरूद्ध ज़रूरी और ईमानदार लडाई लड रहा है तो मुझे कोई वज़ह नहीं दिखाई पडती कि मैं अरविंद के संघर्ष में शरीक हो जाऊं,समर्थन दूं और केजरीवाल से शिकायत हम करें किस मुंह से यदि विश्वासों के नाम पर कुछ अविश्वास उसके इर्द-गिर्द है तो वह सिर्फ इस वजह से क्योंकि विश्वसनीय लोग 'कैलकुलेटिव रिस्क'लेने तक से डरते रहे।तो चलो नारा लगाते हैं ---अरविंद तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं ।यह नारा लगाने में कुछ खास रिस्क नही क्योंकि संघर्ष तो अरविंद को करना है-,हमने वक्त ज़रूरत के हिसाब से नारे पहले भी बदले हैं फिर बदल लेंगे।

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