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Saturday, October 13, 2012

सुधारों व मानेसर की घटना पर दो कवितायेँ

सुधारों व मानेसर की घटना पर दो कवितायेँ ,,आशा करता हूँ आप इस विरोध के स्वर को अवश्य ही स्थान देंगे.
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मानेसर

हमारे लहू की गर्मी से सेठ
तुम्हारी मशीने चलती हैं,
चाहो तो डालकर देखलो
पेट्रोल की जगह,
और इसमें धुआं भी नहीं होता.
अब तुमने जान लिया है,
और देख भी लिया है
कि इसकी लगायी आग,
वर्षों तक जलती है
और ‘मारुती’ से भी
नहीं बुझती.
समझ गए हो तुम,
ये गर्मी जानलेवा भी है,

तुम्हारे पालतू अब लिख रहे है
कि कमेरे पगला गए हैं,
तुम्हारे चौकीदार फटकार रहे हैं डंडा
बजा रहे हैं सीटियाँ,

तुम्हारे चापलूस बुला रहे हैं तुम्हे
“राष्ट्रहित-उद्योगहित-मजदूरहित ” के नाम पर,
दुम दबाए जा रहे हो तुम,

मगर मानेसर तो
कहीं भी हो सकता है,
चाहे गुजरात हो....
चाहे छत्तीसगढ़.....
या सिंगूर..............
लहू हर जगह सुलगता है बराबर....

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लंबी दास्ताँ है सुधारों की

लंबी दास्ताँ है सुधारों की
हमारे मुल्क में,
सैतालिस में शासकों और
पचास में शासन में सुधार,
इकसठ में खेती और
छाछठ में अर्थव्यवस्था में सुधार,
चौहत्तर में गरीबी और
अस्सी में खाद्य आपूर्ती में सुधार,
इस बीच छाछठ से पचहतर तक
एक हरित क्रांति भी,
फिर इक्यानवे में सुधारों की सुनामी,

मगर इन सबके बावजूद
क्यू ठन्डे हैं करोड़ों चूल्हे?
नंगे क्यू है करोड़ों बदन?
क्यू नौजवान घिसता है चप्पल
एक अदद नौकरी के लिए?

क्यू लगाता है किसान मौत को गले?
क्यू नहीं मयस्सर है सबको
पढाई और दवा अब तक ?
क्यू अभी बदहाल है
किसान और मजदूर?

और अब दोबारा एक और सुधार
दो हजार बारह के सुधार,
मगर सुधारों के पास नहीं हैं
इन प्रश्नों के जवाब,

भुकमरी,बेरोजगारी और गरीबी का जवाब
इन्कलाब, इन्कलाब, इन्कलाब औ इन्कलाब
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आपके उत्तर की प्रतीक्षा रहेगी ,
आपका अनुज

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