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Friday, October 5, 2012

श्रीभरतमाला




मंगलाचरण

जय गुरु चरण मंगल रज, दाता मम गुरु भार.
बिना गुरु संज्ञान हंस, राम न यह भव पार.

चित्त धरू सुर बांसुरी, जय सरस्वती धाम.
ज्योतित ज्ञान प्रकाश जग, नमः चरण श्रीराम.

त्रिदेव वन्दना पुनि पुनि, स्रज, पालक संहार.
नमःमात पिता उर धर, पञ्च भूत आधार.

जय अरि मित्र बांधव सब, जय लघु गुरु संसार.
भरत चरित अनुपम धरा, रचता जीवन सार.

श्री श्री 108
श्रीभरतमाला

अथारम्भ जय नाम नियंता. निश्चल भरत चरित्र अनंता.
अतुलित जीवन नयन अभिरामा.जय जय भरतहि जय श्रीधामा.
भरत ह्रदह रामहि सम भागी . सुविग्य कुशल धर्म अनुरागी.
सूर्य चन्द्र सम मेल मिलावें,.स्रष्टि सुने चरित जेहि गावें.
जंगल में मंगल सदभावा. बिलोक सहज भरत बहु चावा.
ललक ललाम ललित अभिरामा.पूजि खडाऊं नंदी ग्रामा.
बारह वर्षों से ननिहाला. तनिक भनक नहीं मुझे डाला.
सब घर का जब हुआ बिखेरा. तब मुझे ननिहाल से टेरा.
घर घर में चर्चा हंस, भरतहि नेक स्वभाव.
मनः कर्म वाणी विमल, सहज सरल सदभाव.
भैया भरत अनुग्रहकारी . राखी कुल मर्यादा सारी.
सह्रद शील धर्म अभिरामा. जय जय भरत जय नंदी ग्रामा.
चैत्र मास शुक्ल पक्ष सोहे. नवमी पुष्य नक्षत्रहि मोहे.
मीन लग्न होयहि शुभ कारा. कैकेयी जन्महि सूत प्यारा.
ऋषि संत सिद्धजन औ, नागा, स्तुति करें धर्म ध्रुव भागा.
भावों में रत जग समीचीना.भरत नाम पुत्रहि रखि दीना.
धरा वही नाम गुरु सयाना. जग जाने युग युग पहचाना.
देखि सर्व जन भाव भर, ठाढ़े सरिता तीर,
भरत म्रदु सौम्य धैर्यमय, बरसहि सरस अबीर.
सूर्योदय की छटा अनूपी.शोभित अवध धरा बहु रूपी.
भरत बहुत गंभीर सुभाऊ. द्रगहि रिझावत नेह लुभाऊ.
विनम्र सहिष्णु शीतलतायी . भ्रात्र प्रेम पयोधि समतायी.
कर्म भूमि यह भारत वर्षा.धर्म कर्ममय मनुज सहर्षा .
वेद निगम अरु विमल पुराना. संस्कृति धर्म राज संज्ञाना.
भरत सरल गंभीर स्वभावा.भाव रसायन सह्रद पावा.
बुझती नहीं संसार में, ममता की एक प्यास,
दिन प्रति दिन बढ़ती रहे,घट में बैठी आस.
मंगल मूर्ति अमंगलहारी. जय जय भरत नाथ सम्भारी.
साधू संतन के हितकारी. सेवित तुम्हें धरा नर नारी.
बालक सकल विद्या प्रवीना. चौदह वर्ष वय पर्ण कीना.
शाद्वल शांत अरु शांति कर्मा . कर्मठता रचती युग धर्मा.
धीरज धर्म नाथ संसारा. ऊपर सोहे जग रखवारा.
भरत समान होय जग वीरा. उमड़े श्रद्धा प्रेम शरीरा.
यह सान्निध्य विमल संसारा.युगयुग भ्रात्र प्रेम उजियारा.
उभरी विकट सहोदर पीड़ा.जस विहंग द्रग खाली नीड़ा.
जहाँ न कभी वध नाम पाया.वह रम्य स्थल अवध कहलाया.
अवधपुरी रमणीक बहु, मन में घर कर जाय,
अन्तः उत्कंठा भरत, जीव धर्म बन जाय.
मरता न पुत्र तात अगारी. बहती सरयू शुचि पय धारी.
यह संज्ञान अवध संयोगा.सकल जगत में हर्षित लोगा.
तहि हुआ भरत प्रादुर्भावा. कुल तिरेसठवां जग सिहावा.
श्रद्धा भक्ति नेह संज्ञाना. अवाध गति वारीश समाना.
धर्म धीर रत कुसुम निहारा.जीवन मधुकर है संसारा.
सह्रदय भाव भरत ने पाया.बचपन माहि सरल गुण छाया.
परहित लसा गूढ़ संज्ञाना. बांधी गाँठ भरत दिनमाना.
धीर वीर ही जग सोहि,राखि भरत तन भाव.
शीतलता की छाँव में, नेक धर्म जन चाव.
कला कौशल विरद सम्मानी.अद्वितीय धनुर्धर सद वाणी.
मात और पिता धर्म स्तम्भा.जीवधर्म म्रदु जग न अचम्भा.
ब्रह्मध्यान औ, गुरु सम्माना.मन वचन कर्म जीव संज्ञाना.
बड़ भ्राता है तात समाना. लघु भ्रात पुत्रवत जग जाना.
नीयति भाव सह्रद समेता .लघु गुरु से जगती में हेता.
नाग भरत का चूमहि भाला. दिव्य सुगंध हुआ मतवाला.
भरतहि धरा वंश सम्माना. शोभित धरा जसहि दिन्माना.
भरत का अनुपम चरित, सर्व सुखद आधार ,
अर्थ अश मिल गौरवता,बिछड़ा मिल परिवार.
प्रकृति सोही छटा अनूपा. भरत बिलोकहिं छवि बहु रूपा.
अवध पुरी भव्य मनोहारी. हर पल वसंत चहुँ फुलवारी.
जनजन प्रसन्नचित्त सिहावें.पुनिपुनि जन्म अवध में पावें.
भ्रात्र प्रेम उमडा अति भारी. टपटप आंसू गिरें अगारी.
धवल चन्द्र मनुपुरी पधारा.भरतहिं त्याग अमित संसारा.
महात्मा भरत होश खोये. भ्रात संग फूट फूट रोये.
यशस्वी भरत कर विलापा.देख राम को अति संतापा.
हिलकी भर रोवे भरत, नैनन अश्रु बहाय.
पुनि पुनि पूछें रामजी, भरत न द्रष्टि मिलाय.
देख हाल श्री भरत का, राम नाथ सकुचाय.
भैया! विधना है प्रबल, बार बार समझाय .
काल की माया बहु अपारा.फेरे जन की मति संसारा.
दिन नहीं आता पुनि संसारा. स्वांस करे वय का संहारा.
भरत विज्ञवान पुरुष धीरा. शोक विलाप त्याग मम वीरा.
तब श्रेष्ठ भरत उठि लघु बीरा. विचित्र बात कही धर धीरा.
हे अरिदमन! राम रघुबीरा. तुम धर्मज्ञ जस पय समीरा.
सत्य धर्म पराक्रमी रामा.भरत पकड़े पैर अभिरामा.
जन जन को है तारता, सरयू का शुचि नीर,
भरत जन्म तहां मनुपुर, उस सरिता के तीर.


भरत विनय करे बार बारा.नैनन से बहे अश्रु धारा.
राजा राम सदैव उचारा. भ्रातहि भरत नेक संसारा.
मंगल समागम म्रत्यु लोका. राम भरत सम नहिं इहिलोका.
भ्रात्र स्नेह अन्तः सरसाया. हंस सु मधुरम वचन सुनाया.
तबहि भरत सहज मुस्कराएं . प्रभु! ये सुवर्णहि पादुकाएं.
इस पर चरण रखो हे नाथा! छूकर इनको करो सनाथा.
राम ने वे भरत को दीनी. सर्व कार्य विरद समीचीनी.
सह्रदय दयाभाव भर,अन्तः नहिं पछिताय,
जीवन सबका है धरा, लोभ न मन में आय .
श्रद्धा भक्तिहिं भाव से, भरत राम का दास,
स्वार्थ नहीं उस तन बसा, बिन प्रभु रहे उदास.
महात्मा भरत बहु आह्लादा. भंग न किया भ्रात का वादा.
कंदमूल फलादि मैं खाऊँ. खडाऊं से स्वराज्य चलाऊँ.
चौदह वर्ष तक यह संवारूं. नाथ!आप की वाट निहारूं.
भ्रात! जब पूर्ण हो वनवासा. अगले दिन आना सोल्लासा.
यदि उस दिन न आये नरेशा.तो मैं करूंगा अग्नि प्रवेशा.
सिर पर धरीं पादुका वीरा. टपटप गिरहिं आँख से नीरा.
सुनी भरत की बात सब,परशुराम सिर नाय.
शिथिल हुए मुनि के अंग, कुठार भू गिर जाय.
चलहिं भरत बिलोक रघुनाथा. पादुका धरि शत्रुंजय माथा.
धर्म की धुरी भरत कुमारा. बृहद ह्रदय सुमुदित संसारा.
चित्रकूट नतमस्तक सारा. धन्य भरत मुझको भवतारा.
तस भ्रात्र प्रेम नहिं संसारा.भ्रात प्रति भरत सद व्यवहारा.
भरद्वाज मुनिहि शुचि उचारा. धन्य महात्मा अवध कुमारा.
सर्व गुण भूषित सदाचारी.धर्मज्ञ त्याग मूर्ति जू भारी.
यह संतोष धर्म परिपाटी. भंगित कुल बांधा एक घाटी.
चहुँ ओर हो आनंद वर्षा. झूमें लता पुहुप औ, हर्षा.
आनंद हि आनंद चहुँ, धन्य भरत सा वीर,
सारा कुटुंब बाँध पुनि, नहाय सरयू तीर.
नियम धर्म का पालन कर्ता. राम राज्य का पालक भर्ता.
सर्वस पावन पथ के गामी.चोरहि भ्रष्टाचार न कामी.
तस से मस न होय हनुमाना. धरणी पडा कराह निदाना.
राम भक्त नहीं करे विलापा. क्योंकि उसे होय न संतापा .
पुलकित भरत हर्षित शरीरा. चौदह वर्ष बाद दृग बीरा.
प्रभु समीप आनंद विभोरा. साष्टांग जू कैकेयी छोरा.



चरण पादुका में मुझे, दीखें असली राम,
यह नंदी ग्राम वन नहीं, विमल अवध का धाम.
धर्मज्ञ भरत बहु हरषायी. राम को खडाऊं पहनायी.
धरोहर रूप में यह पाया. प्रभु चरणों में आज गहाया.
देखो घर सैन्य औ, खजाना. दस गुना किया हे दिनमाना.
जय भरत कैकेयी कुमारा. गूंजा नभ थल पारावारा.
भरतहि सारथि बन सिहाये. मुनि मंत्री द्विज जन हरषाये .
भरत कहि सुग्रीव से नेका. जल मँगाओ हेतु अभिषेका.
पञ्चशत नदियाँ जलधि धारा.इनका जल लाओ इस कारा
शिव भाषि सुन शैल सुता, देख भरत की भक्ति,
जूती की पूजा करे, यही राम की शक्ति.
शुक्ल पक्ष षष्ठी चैत्र मासा. पूरण हुई राम अभिलाषा.
राम ने सरक मध्य उचारा. मम सिर मुकुट भरत के कारा.
भरत वीर योद्धा संसारा. दूजा नहिं जस जगत निहारा.
गंधर्वों में हाहाकारा . पौना-सी शव देख अगारा.
सुर बिलोक नभ बैठि विताना. मुदित दृग भरतवीर महाना.
एक एक लखि गंधर्व मरोड़ा. संहारे सब तीन करोड़ा.
शैलूष गन्धर्वहि जू राजा. मरा पडा धरनि बिनलाजा.
भरत जस ज्ञान नहिं जन काहू. शिष्ट सहज सरल महाबाहू.
भरत भाव जिस तन बसा, पूरन हों सब कार्य.
सफल मनोरथ भरत का, आनंदित सब आर्य.
गन्धर्व देश जीत निहारा. प्रभु को दिया शुभ समाचारा.
पुनि भरत बात अंगीकारा. कारूपथ पर कीन्ह अधिकारा.
अंगदीय चंद्रकांत बसाई. अंगद चंद्रकेतु नृप भाई.
तहि करहि भरत धर्म प्रचारा. नेक नीयति मनुज संसारा.
सहज सत्यहि शिष्ट सदभावा.यहीं मिलें काशी औ, कावा.
कहि हंस कवि सत्य दिनमाना.कर्म ही जगतहि प्रधाना.
श्री भरत का कर्म ही सेतू. भौतिक रूपहि धर्म निकेतू.
नाथहि आपका ही प्रतापा. अंतर्मन से मैं ने जापा.
भाव सागर से तारक नैया. जन जन के आप ही खिबैया.
सलिल धरा की संधि पर, रामहि भरत मिलाप.
नभ हर्षित सुर देव बहु, मिटा धरा संताप.
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श्रीभरत आरती

ॐ जय श्री भरत हरे, ॐ जय श्री भरत हरे.
प्रजा जनन के संकट, पल में दूर करे.

भक्त जनन कारण, वन में भक्ति करी,
श्रद्धा त्याग ह्रदय में, खडाऊं पूजि हरी.

विकट समस्या धरणि पै, भरत लाल पाता,
भ्रात्र भाव भुवन में, रघु कुल प्रण गाता.

त्रिकोटि गन्धर्व संहारे, और शैलूष मारा.
सुर मुनिजन सब हर्षित, पावन भवन सारा.

लालच लोभ न मन में , नंदी ग्राम गए,
मन प्रक्षालन कीना, माँ को तार गए.

राखि मर्यादा कुल की , राम राम दाता,
धर्म स्थापना कीनी, जन जन गुण गाता.

भ्रात्र प्रेम का टीका, भरत भाल सोहे,
वासुकि नाग जू ध्यावै, सूँघत मन मोहे.

भरतनाथ की आरती, जो कोई नर गावै,
रिद्धि सिद्धि घर आवै,अरु मुक्ति भाव पावै.

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पढ़िये: बृहद भरत चरित्र महाकाव्य : महाकवि भगवान सिंह हंस
(टीका सहित) पेज -736
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विशिष्ट:- इस महाकाव्य पर विश्वविद्यालयों में शोध (एम फिल&;पीएचडी) हो चुके हैं. श्रद्धालुजन घरों और मंदिरों में पाठ एवं श्री भरत की आरती कर रहे हैं.इसमें इक्ष्वाकुवंश की 121 पीढ़ियों का विस्तृत
वर्णन और राजा दशरथ की पुत्री शांता का भी विशेष चित्रण है. देश की सभी विश्वविद्यालयों/ पुस्तकालयों में अध्ययनरत.
जन्म/निवासी :- 06 जुलाई 1954, ग्राम-हसनगढ़ , तहसील-इगलास, जनपद -अलीगढ (उ प्र)
वर्तमान आवास :-एम-57 लेन -14 ब्रह्मपुरी दिल्ली -110053, एम-9013456949
शिक्षा /सम्प्रति:- एम ए हिंदी, प्रधान अभिलेख अधिकारी, डाक विभाग दिल्ली
रुचियाँ :- कवि सम्मलेन,/काव्य गोष्ठी में भागीदारी, दूरदर्शन और आकाशवाणी पर काव्य पाठ.
सम्मान :-साहित्यश्री , बिस्मिल साहित्य सम्मान, साहित्य शिरोमणि दामोदर दास चतुर्वेदी सम्मान , सर्वभाषा संस्कृति समन्व समिति सम्मान, महामहीम राष्ट्रपति द्वारा अभिनंदित.
श्री हंस का रचना संसार
1. ऊषा (खंड काव्य )
2.भरत चरित्र (महाकाव्य )
3. सफ़र शब्दों का (काव्य संग्रह)
4. श्रीभरतमाला (ध्यानमणिका)
5. बृहद भरत चरित्र हाकाव्य (प्रकाशाधीन)

प्रस्तुति --

योगेश

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