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Saturday, October 6, 2012

कविता हमारी चेतना का आनंदात्मक अस्तित्व है।


पुस्तक समीक्षा-
यथार्थ को शब्द की नागरिकता दिलाती कविताएं
कविता हमारी चेतना का आनंदात्मक अस्तित्व है। और व्यष्टि से समष्टि की यात्रा इस कविता का नैसर्गिक स्वभाव है। यह स्वभाव जितना तीव्रतर और सांद्र होता है कविता उतनी ही अधिक समाज-संदर्भित,लोकबद्ध तथा समय सापेक्ष होती चली जाती हैं। खबरे और अन्य कविताएं कविवर गंगाप्रसाद विमल का नव्यतम काव्य संग्रह पाठकों को ऐसी ही कविताओं से रू-ब-रू कराता है जिसमें अनुभूति की टहल करती हुई तरंग पूरी खामोशी के साथ अनवरत हमारे बाहर और भीतर जो रूपायित हो रहा है कविताओं के मार्फत उस अघोषित बदलाव की हमें पक्की खबर देती है। उस बदलाव की खबर जिसे हम पूरी सजगता में भी महसूस नहीं कर पाते। जिसे देखकर भी हम नहीं देख पाते हैं। उस अनदेखे की पूरी शिद्दत से हमें खबर देती हैं ये कविताएं-
किसीने नहीं देखा,कब,कैसे परिवर्तन घटता है आदमी पर,अपनी सजगता में,नहीं देख पाते,असजग से हम, इसी पल या अगले पल,एक बदलाव,हमारे बाहर और भीतर को रूपायित कर रहा है,हमारे जाने बिना,घट रहा है आश्चर्य, अचरज में गलते हुए (-किसी ने नहीं देखा)
देखे और अनदेखे के स्पेस में जो अर्थवान चुप्पी है वह इस संकलन की ज्यादातर कविताओं में ऐसे सलीके के साथ बतियाती है कि कविताओं में जो अनकहा है,वह भी अभिव्यक्त हो जाता है। अनकहे की व्याप्ति ही इन कविताओं की भाव-भाषा है। जहां चेतना कविताओं के मार्फत एक ऐसे लोक की यात्रा करती हैं,जिसकी अनाम दिशाओं के समयहीन पड़ाव पर शब्द अपनी खुली-खुली आंखों से उस शेष को देखते हैं जो अशेष है,जो पूर्णमिदं है। यह समयहीन पड़ाव समय के उस देशांतर में है जो समय के बाहर के समय-भूगोल में कहीं स्थित है। जो समयातीत है। जो बियांड द टाइम है-
उड़ते-उड़ते सब-के-सब ठहर गए,समयहीन पड़ाव पर,और देने लगे कि हम जो अभी उड़ रहे थे,उड़ नहीं रहे हैं...और फिर यही वक्त है जो ठहरा हुआ था मेरे कालखंड में,दिखा सकता है,धीमे-धीमे,गणनाओं का तिलिस्म (-है कुछ बाकी)
संग्रह की कविताएं हमें इस बात की भी खबर देती हैं कि अभद्र हेकड़ी के साथ किस तरह चालाक राजनीति के कुटिल खिलाड़ी हमारे महत्वपूर्ण मुद्दों को हथिया लेते हैं और उन्हें व्यवस्था-तंत्र का उपभोक्ता पदार्थ बनाकर अपने तई इस्तेमाल कर लेते हैं। किसान आत्महत्याएं करते हैं। ये कविताएं बताती हैं कि आज की आत्महत्याएं ही कल के सामाजिक परिवर्तन का हथियार बनेंगी-किसानों की आत्महत्याएं. एक-एक आत्महत्या, हत्या है असल में,एक-एक आत्महत्या में घटित है जीवनगाथा,एक-एक आत्महत्या का हिसाब देना पड़ेगा इतिहास को,एक-एक आत्महत्या से पैदा होंगे औजार (-आत्महत्या)
अराजकता के घुप्प अंधेरे में ये कविताएं हमारे भीतर छटपटाती उस आवाज़ की बखूबी शिनाख्त करती हैं जो मजबूरी की सरहदों को तोड़कर बाहर निकलना चाहती है मगर उसे रास्ता नहीं मिल रहा है। तब यही कविताएं बताती-जताती हैं कि भीतर के भी बहुत भीतर से कहीं निकलेगा बाहर जाने का रास्ता-
सबकुछ पदार्थिक पड़ा रहेगा यहीं,और बाहर के रास्ते किसी सुरंग से,निकल जाऊंगा बाहर,न देख पाओगे दृष्टि संपन्न तुम,और न देख पाऊंगा मैं बहिर्गमन, ऐसी गुपचुप है यात्रा,आना और जाना निःशब्द (बाहर का रास्ता)
इस तरह इस संग्रह की कविताएं पाठकों को बहिर्तंर होनेवाले उस संवाद तक ले जाती हैं जहां वे उसे बतियाते हुए सुनते हैं जो हम में होकर भी हम से बाहर है और जो हम से बाहर होकर भी हमारे भीतर के भी कहीं बहुत भीतर है। पदार्थ और अस्तित्व के बीच का स्पेस भरती ये कविताएं बड़ी हुनरमंदी के साथ समय सापेक्ष यथार्थ को शब्द के भूगोल की नागरिकता प्रदान करती हैं।
-सुरेश नीरव
खबरे और अन्य कविताएं (काव्य संग्रह) कवि-गंगाप्रसाद विमल-प्रकाशकःकिताबघर प्रकाशन,नयी दिल्ली,मूल्यः175 रुपये

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