श्री घनश्याम वशिष्ठजी,
आपके नियमित शेर मजे ला रहे हैं। मुझे उम्मीद है कि 22,नवंबर को शाम 5.30 बजे आप साहित्य अकादेमी जरूर आ रहे हैं। हम तो बस याद दिला रहे हैं।
0000000000000000000000000000000000000000000000000000000
श्री प्रकाश प्रलयजी,
आप की शब्दिकाएं
बहुत असरदार होती जा रही हैं।
इनमें व्यंग्य की धार है,
हास्य की फुहार है,
सत्ता का खुमार है,
सरकारी भ्रष्टाचार है
जनता का बुखार है,
दर्शन का बघार है
आपकी महिमा अपरंपार है।
आपके नियमित शेर मजे ला रहे हैं। मुझे उम्मीद है कि 22,नवंबर को शाम 5.30 बजे आप साहित्य अकादेमी जरूर आ रहे हैं। हम तो बस याद दिला रहे हैं।
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श्री प्रकाश प्रलयजी,
आप की शब्दिकाएं
बहुत असरदार होती जा रही हैं।
इनमें व्यंग्य की धार है,
हास्य की फुहार है,
सत्ता का खुमार है,
सरकारी भ्रष्टाचार है
जनता का बुखार है,
दर्शन का बघार है
आपकी महिमा अपरंपार है।
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