Search This Blog

Friday, November 23, 2012

पं० सुरेश नीरव आप विद्वान भी हैं और कवि भी हैं

कविता को स्थूल कविता,वैचारिक कविता,छंद मुक्त कविता,छंदबद्ध कविता,अकविता ,नई कविता और ना जाने किन किन सांचों और वादों में बांधने और बांटने के दुराग्रहों और पूर्वाग्रहों के बीच जो कविता कहीं खो सी गयी थी वह अपनी पूरी गरिमा और तेवर के साथ २२ न
वंबर २०१२ को पं० सुरेश नीरव की वाणी से साहित्य अकादमी के सभागार में झंकृत हुई।
नई दिल्ली के फीरोजशाह मार्ग स्थित रवींद्र भवन,साहित्य अकादमी परिसर में सायं ६०० बजे ७३० तक अनवरत कविता की रस वर्षा के पश्चात आधा घंटे तक चले प्रश्नोत्तर सत्र के दौरान हिंदी अकादमी के उपाध्यक्ष विमलेश कांति वर्मा की टिप्पणी--"----सामान्यतया ये देखा गया है कि कवि विद्वान नही होता और विद्वान कवि नहीं होता।पं० सुरेश नीरव आप विद्वान भी हैं और कवि भी हैं अतः प्रणम्य हैं।"स्वयं ही कार्यक्रम की गुणवत्ता -महत्ता को रेखांकित करने के लिये काफी है।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के बुद्धिजीवी श्रोताओं-साहित्यकारो-जिनमे जो नाम मुझे तुरंत याद आ रहे हैं उनमे नमिता राकेश,सुषमा भंडारी,अनुभूति चतुर्वेदी,रिचा सूद,दयावती,स्नेह लता,रेखा व्यास जैसी कवयित्रियां तो साहित्य अकादमी के सचिव के० श्रीनिवासन,उपसचिव ब्रजेंद्र त्रिपाठी,बी०एल०गौड,पुरूषोत्तम वज्र,राजमणि,ताहिर हुसैन,श्रद्धानंद,अशोक जाजोरिया,ज्ञान,गजे सिंह त्यागी,कर्नल-,अनिल वाजपेयी,पी०एन० सिंह,राहुल उपाध्याय जैसे मंच और साहित्य के स्थापित नाम करतल ध्वनि से निरंतर अपनी जीवंत उपस्थित दर्ज कराते रहे।
गीत,गज़ल,कविता,मुक्तक और तत्पश्चात कविता की प्रासंगिकता को नये सिरे से परिभाषित करते सुरेश नीरव ने अपने पांडित्य के आलोक में उसी तरह साहित्य के सभा कक्ष को आच्छादित कर लिया जिस तरह त्रेता युग में विदेह राज जनक की सभा को याज्ञवल्क्य ने कर लिया था।
यों तो साहित्य अकादमी का 'राजभाषा मंच' एकल काव्य पाट के समारोह आयोजित करता ही रहता है परंतु पहली बार किसी ऐसे कवि की कविताओं से यह सभाकक्ष आंदोलित हुआ जिसे कविता की वाचिक और अकादमिक दोनो ही परंपराओं में समान रूप से सुना पढा और सराहा जाता है।ऐसे आयोजन के लिये साहित्य अकादमी,काव्यपाठ करने वाले पंडित कवि सुरेश नीरव तो बधाई के पात्र हैं ही साहित्य अकादमी के सभाकक्ष मे मौज़ूद वे मेरे तमाम कवि मित्र जिनमें रजनीकांत राजू,बेबाक जौनपुरी,विष्णु शर्मा,ओमप्रकाश प्रजापति (के साथ -साथ मेरे अवचेतन में संग्रहीत वे सभी व्यक्तित्व जिनके नाम अभी याद नहीं कर पा रहा,)आदि भी बधाई के पात्र है जो पूरे मन से इस आयोजन से किसी भी रूप में जुडे रहे।
इस अवसर पर सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति की ओर से हिंदी अकादमी दिल्ली के उपाद्यक्ष विमलेश कांति वर्मा को पं० सुरेश नीरव ने सम्मानित भी किया ।कार्यक्रम का संचालन ब्रजेंद्र त्रिपाठी ने किया।

No comments: