रेल्वे बुक स्टाल और हिंदी की दुर्दशा
अभी हाल में पुरानी दिल्ली रेल्वे जंक्शन के बुक
स्टॉल पर हिंदी पत्रिकाओं और
पुस्तकों की
तलाश में एक सामान्य पाठक की तरह भटकता हुआ मैं भी पहुंचा। और मैंने
कमलेश्वर,धर्मवीर भारती,अमृतलाल नागर,हरिशंकर परसाई,शरद जोशी,राजेन्द्र
यादव, गोपाल चतुर्वेदी-जैसे प्रतिष्ठित हिंदी लेखकों की पुस्तक के बारे में
पड़ताल की तो जवाब नकारात्मक मिला। फिर मैंने जब कादम्बिनी, ज्ञानोदय,
हंस-जैसी साहित्यिक पत्रिकाओं के बारे में पूछा तो एक भी पत्रिका इस स्टॉल
पर नहीं मिली। जब कि दोयम दर्जे की तमाम पत्र-पत्रिकाएं और पुस्तकें वहां
इफरात में उपलब्ध थीं। क्या हिंदी के पाठकों को इतने हेय दृष्टि से देखा
जाता है कि उनकी पसंद और ना पसंद का इनके लिए कोई मतलब ही नहीं होता। जब
दिल्ली जैसे महत्वपूर्ण स्टेशन के स्टॉल की हालत ये है तो बाकीस्टेशनों का
अंदाजा अपने आप लगाया जा सकता है। क्या रेल्वे प्रशासन ने इन बुक स्टॉलों
की गुणवत्ता के लिए कभी कोई आचरण संहिता बनाई है।या फिर ठेका ठूट जाने के
बाद वह इस दायित्व से अपने को मुक्त समझने लगते हैं। क्या इन स्टॉलों पर
अच्छी पुस्तकों की उपलब्धताके लिए रेल्वे प्रशासन अपना नैतिक फर्ज समझते
हुए समय रहते कोई ठोस कदम उठाएगा या फिर इसके लिए साहित्यप्रेमियों को भी
लामबंद होना पड़ेगा। माननीय रेलमंत्रीजी,रेल्वे की हिंदी समिति इस देश की
राष्ट्रभाषा और राजभाषाके प्रति अपने सामाजिक सरोकारों को समझते हुए कोई
सुखद रचनात्मक कदम उठाए हमारी यही गुजारिश है।
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