हमें गर्व भारत भूमि पर जिसनें वीर सुभाष दिया
बन तूफानी लहर चला था, जो हुगली की धारों से ,
खेल खेल में खेल गया जो ,आग भरे अंगारों से
नहीं रुका, वह नहीं झुका, गोरों के अत्याचारों से ,
पांचजन्य उद्घोष किया, जिसने फौलादी नारों से
जयहिंद जयहिंद गूँज उठा मरुथल से और कछारों से
देवदार से, केसर से ,हिम घाटी से ,कचनारों से
ताल तलईया कूपों से, सरिता के शांत किनारों से
खेतों से, मैदानों से गाँवों से, हर गलियारों से
आग लिए सीनों में दीपक ,ढूंढ लिए अंधियारों से
और उन्हें लड़ना सिखलाया बारूदी हथियारों से
जगा जगा सोते सिंहों को ,ताक़त का अहसास दिया
हमें गर्व भारत भूमि पर जिसनें वीर सुभाष दिया
घनश्याम वशिष्ठ
बन तूफानी लहर चला था, जो हुगली की धारों से ,
खेल खेल में खेल गया जो ,आग भरे अंगारों से
नहीं रुका, वह नहीं झुका, गोरों के अत्याचारों से ,
पांचजन्य उद्घोष किया, जिसने फौलादी नारों से
जयहिंद जयहिंद गूँज उठा मरुथल से और कछारों से
देवदार से, केसर से ,हिम घाटी से ,कचनारों से
ताल तलईया कूपों से, सरिता के शांत किनारों से
खेतों से, मैदानों से गाँवों से, हर गलियारों से
आग लिए सीनों में दीपक ,ढूंढ लिए अंधियारों से
और उन्हें लड़ना सिखलाया बारूदी हथियारों से
जगा जगा सोते सिंहों को ,ताक़त का अहसास दिया
हमें गर्व भारत भूमि पर जिसनें वीर सुभाष दिया
घनश्याम वशिष्ठ
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