भगवान सिंह हंस
प्रणीत
बृहद भरत चरित्र महाकाव्य से कुछ प्रसंग आपके दर्शनार्थ-
महातेजस्वी राम वाणी। किसका यह वन मुनि कल्याणी।
हरा भरा वन समृद्धशाली। शोणभद्र शोभित मतवाली।।
महातेजस्वी राम बोले, हे मुनि कल्याणी ! यह वन किसका है। यह बड़ा हरा भरा और समृद्धशाली है। शोणभद्र का तट बहुत सुशोभित है।
बोले मुनि राम पूर्वकाला। विख्यात नृप कुश नाम वाला। .
ब्रह्मा के आत्मज साक्षाता। व्रत संकल्प धर्म के ज्ञाता।।
मुनि विश्वामित्र बोले, राम! पूर्वकाल की बात है। कुश नाम का एक विख्यात राजा था। वः साक्षात ब्रह्मा का पुत्र था। वह व्रत, संकल्प और धर्म का ज्ञाता था।
विदर्भ देशी राजकुमारी। नृप की अर्द्धांगिनी उचारी।
चार पुत्र जन्मे उस भामा। असूर्त कुशनाभ वसु कुशामा।।
विदर्भ देश की एक राजकुमारी उसकी अर्धांगिनी थी। उस धर्मपत्नी से राजा के चार पुत्र हुए- असूर्त, कुशनाभ, वसु और कुशाम्ब।
महान उत्साही कुश राजा। करो सुपुत्र! धर्ममय काजा।।
कुशाम्ब जु कौशाम्बी बसायी।असूर्त को धर्मारन्य भायी। .
कुश राजा उत्साह वाला था। उसने पुर्तों से कहा कि सभी पुत्र धर्ममय काज करो। इस तरह कुशाम्ब ने कौशाम्बी बसायी और असूर्त ने धर्मारन्य नामक नगर बसाया।
वसु ने गिरिव्रजपुर सजाया। सदा शस्य शोभित तट पाया।
कुशनाभ को महोदय भाया। महोदयपुर अलंकृत साया। .
वसु ने गिरिव्रजपुर नामक नगर बसाया। उसका तट सदा शस्य और सुशोभित रहता था। कुशनाभ ने महोदयपुर बसाया। महोदयपुर बहुत ही अलंकृत और सुन्दर नगर था।
कुशनाभ की घ्रताची भार्या। रूपवती कनक वर्ण आर्या। .
शत तनया जन्मी लावण्या। आभूषित रूप राजकन्या . .
कुशनाभ की घ्रताची नाम की पत्नी थी। वह बड़ी रूपवती और सुवर्णा थी। उसने सौ कन्याओं को जन्म दिया। वे राजकन्याएं बड़ी रूपसी और आभूषित थीं।
नृप ने ब्रह्मदत्त बुलवाया। स्वसुताओं का ब्याह रचाया। .
बहु आह्लादित नृप कुशनाभा। ब्याहीं कन्याएं रस लाभा।।
राजा कुशनाभ ने चूली ऋषि की सेवारत गन्धर्व कुमारी सोमदा के मानस पुत्र ब्रह्मदत्त को बुलाया और अपनी सौ कन्याओं का ब्याह उसके साथ कर दिया। यह देखकर राजा कुशनाभ बहुत खुश हुआ। इस तरह वे अपने जीवन के रसानन्द का लाभ लेने लगीं।
राजा कुशनाभ पुत्रहीना। पुत्रेष्टि यग्यहि समीचीना।।
शुभ मुहूर्त किया अनुष्ठाना। धर्ममय सुत अंकहिं समाना।।
राजा कुशनाभ पुत्रहीन था। उस राजा ने एक पवित्र पुत्रेष्टि यग्य किया। यग्य अनुष्ठान शुभ मुहूर्त में किया गया। कुश समय बाद उसके यहाँ एक धर्ममय पुत्र ने जन्म लिया जो राजा के समान था।
गाधि सुतनाम देव उचारा। अक्षय यश सुत का संसारा।
वही हुए हैं मेरे ताता। कुश कुल जन्म कौशिक कहाता।।
देवोँ ने उस पुत्र का नाम गाधि रखा। गाधि सूत का संसार में अक्षय यश था। वही गाधि मेरे तात हैं। कुश कुल में जन्म होने के कारण मैं कौशिक कहलाता हूँ।
सत्यवती मम बहिना ज्येष्ठा।परमउदार धर्ममय चेष्ठा।।
सशरीर सुरपुर में पधारी। नदी रूप में धरा उतारी। .
मेरी एक बड़ी बहिन सत्यवती थी। वह परम उदार और उसकी धर्ममय चेष्टा थी। एक बार वह सशरीर इंद्रलोक पधारी। वहां से वह नदीरूप में धरणि पर उतारी।
कौशिकी नदी नाम कहाया। वहीँ तट पर मम वास पाया।।
यग्य हेतु मैं बक्सर आया। सिद्धाश्रम में सुसिद्धि पाया। .
इसलिए उस नदी का नाम कौशिकी कहलाया। उसी नदी के तट पर मेरा निवास है। मुनि विश्वामित्र ने कहा, मैं यग्य हेतु बक्सर आया और यहाँ सिद्धाश्रम में सिद्धि प्राप्त की।
कुल उत्पत्ति मुनि ने बतायी। कहते वह निश अर्ध गंवायी। .
शयन करो हे लक्ष्मण रामा। मुझे भी अब नींद अभिरामा। .
इस प्रकार मुनि विश्वामित्र ने अपनी कुल उत्पत्ति बतायी। इस तरह कहते-कहते आधी रात बीत गयी। हे राम लक्ष्मण! शयन करो। मुझे भी अब नींद आ रही है, विश्वामित्र ने कहा।
प्रस्तुति--
योगेश
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