Search This Blog

Saturday, March 2, 2013

बजट को याद करते हुये


अब मैं राशन की कतारों में नज़र आता हूँ
अपने खेतों से बिछडने की सज़ा पाता  हूँ

इतनी मह्ंगाई  के बाज़ार से कुछ लाता हूँ
अपने  बच्चों  में उसे  बाँट के शरमाता हूँ

अपने नीदों के लहू को पोछने की कोशिश में
जागते  जागते  थक  जाता  हूँ सो जाता हूँ

कोई चादर समझ के खींच न ले फिर से ख़लील
मैं क़फन  ओढ़  कर  फुटपाथ  पे  सो जाता हूँ

 
- राजमणि 

No comments: