
 परम 
श्रद्धेय एवं आदरणीय
परम 
श्रद्धेय एवं आदरणीयशब्दऋषि गुरूजी पंडित सुरेश नीरवजी
की मंगलमय चरणरज जो मेरे माथे का तिलक है, के अनवरत आशीर्वाद से मेरे तुच्छ भावों का श्रंखलावत एवं द्वितीय संस्करण टीका सहित बृहद भरत चरित्र महाकाव्य रुपी भागीरथी जन-जन को तारने वाली, हंस सरोवर से प्रवाहित होकर अब आपके करकमलों में पहुँच चुकी है। इस महती गुरु प्रसाद के लिए जो मेरे लिए मुस्किल था, श्रीगुरूजी को धन्य- धन्य करके कृतकृत्य होता हूँ . मेरे पालागन।
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**महत्वपूर्ण रचनात्मक उपलब्धि के लिए हार्दिक बधाई श्री भगवानसिंह हंसजी।
 
 
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