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Thursday, September 26, 2013

तो गांधी की जय हो।

तो गांधी की जय हो
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चरखे पर बापू सुराज का तुमने काटा धागा
तकली से असली भारत का स्वाभिमान था जागा
फिर स्वदेशी के प्रति जन-मन में श्रद्धाभाव उदय हो
नैतिकता का पुनर्रोदय हो तो गांधी की जय हो ।

छाप के नोटों पर गांधी को बेच दिया बाजार में
नारों में रक्खा बापू को रक्खा नहीं विचार में
राजनीति और देश प्रेम का फिर से इकबार विलय हो
हर अनीति का क्षय हो तो गांधी की जय हो।

भिखमंगे अब दौलतवाले सच्चे को रोटी के लाले
चोरों के आभारी ताले दुराचारी हैं रुतबेवाले
मिटे अंधेरा भ्रष्टाचारी करुणा धुली सुबह हो
प्रजा और तंत्र में लय हो तो गांधी की जय हो।


संस्कृति की स्वर्णिम थाती पर कुछ परिवार चढ़े छाती पर
मंडराते ज्यों कीट पतंगे जलते दीपक की बाती पर
जन सेवक का निर्वाचन जब जनसेवा से तय हो
जमगण मन निर्भय हो तो गांधी की जय हो। 


 करें परस्पर दोषारोपण जारी है जनता का शोषण
विज्ञापन, जाली प्रचार से होता रोज़ झूठ का पोषण
नकली विकास के सौदागर को इंकलाब का भय हो
सत्याग्रह को मिली विजय हो तो गांधी की जय हो।

-पंडित सुरेश नीरव



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