अगर दर्द-ए- मुहब्बत से ना इंसान आशना होता
ना मरने का मज़ा होता ना जीने का मज़ा होता
हज़ारों जान देते हैं बुतों की बे-वफाई पर
अगर उनमें से कोई बा-वफ़ा होता तो क्या होता
अगर दम भर भी मिट जाती खलिश - खार तमन्ना
दिल हसरत तलब को अपनी हस्ती है गिला होता
ये माना बे-हिजाबाना निगाहें कहर करती हैं
मगर हुस्न-ए -हया परवर का आलम दूसरा होता ।
प्रस्तुति: अनिल (३१.०३.२०१० सायं ४.२० बजे )
1 comment:
agar darde muhabbat se na insan ashana hota
najine ka maja hoga na marane ka maja hota
nice lines
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