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Wednesday, March 31, 2010

निगाहें कहर करती हैं...


अगर दर्द-ए- मुहब्बत से ना इंसान आशना होता

ना मरने का मज़ा होता ना जीने का मज़ा होता

हज़ारों जान देते हैं बुतों की बे-वफाई पर

अगर उनमें से कोई बा-वफ़ा होता तो क्या होता

अगर दम भर भी मिट जाती खलिश - खार तमन्ना

दिल हसरत तलब को अपनी हस्ती है गिला होता

ये माना बे-हिजाबाना निगाहें कहर करती हैं

मगर हुस्न-ए -हया परवर का आलम दूसरा होता ।

प्रस्तुति: अनिल (३१.०३.२०१० सायं ४.२० बजे )

1 comment:

vedna said...

agar darde muhabbat se na insan ashana hota
najine ka maja hoga na marane ka maja hota
nice lines