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Wednesday, March 31, 2010

... छलक रही है शराब


चिराग -ए- इश्क जलाने की रात आई है

किसी को अपना बनाने की रात आई है

फलक का चाँद भी शरमा के मुंह छुपायेगा

नकाब रुख से हटाने की रात आई है

निगाह-ए-साकी से पैहम छलक रही है शराब

पियो कि पीने -पिलाने की रात आई है

वो आज आये है महफ़िल में चांदनी लेकर

कि रौशनी में नहाने की रात आई है ...

प्रस्तुति: अनिल (०१.०४.२०१० अप १२.०० बजे )

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