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Thursday, May 7, 2009
जगदीश परमार का सदाबहार गीत
उत्तर प्रदेश में ब्लाग लिखना लाइट महकमें की मां-बहन करना है। लिखने बैठो तो लाइट बीच में ही उजड जाएगी,और व्लाग लिखनेवाले को उसकी औकात भी बता देगी। मैंने एक बहुत सुंदर गीत ग्वालियर के जगदीश तोमर का लिखा। बीच में ही ऐसी-की तैसी हो गई, लाइट की। फिर दुबारा लिख रहा हूं यह अपनी भी जिद है...
जगदीश परमार का सदाबहार गीत
तुमको नजर नहीं लग जाए बहकी हुई बयार की
इस कारण कहता हूं तुमसे कभी न आना द्वार पर
उजड़ी-उजड़ी गुलमोहरों की दुखियारी-सी गंध है
तुलसी पर दीए का जलना बिना तुम्हारे बंद है
अब तुम आओ दीप जलाओ लेकिन गति खामोश हो
क्योंकि तुम्हारी पायल गाती अक्सर मादक छंद है
जख्मी होकर प्राण बंसुरिया मीठी तान अलापती
इस कारण कहता हूं तुमसे कभी न गाना प्यार पर।
सुंदर अधिक सगा करता है माना चित्र अतीत का
लोकिन मुश्किल पड़ जाता है दिल बहलाना गीत का
दरपन की आंखों में आंसूं इसीलिए हैं आज तक
कोई उसे बताए कैसे यह निर्णय है प्रीत का
सजती सेज सभी की इक दिन इस नश्वर संसार में
इस कारण कहता हूं तुमसे खिलना न श्रंगार पर
सुख-दुख दोनों मीत जनम के दोंनों में संबंध है
मुश्किल में अनुभव खिलते हैं उड़ती अधिक सुगंध है
पर तुम याद कभी मत करना बीते हुए बिछोह की
मिलना और बिछुड़ना यह तो जीवन का अनुबंध है
पता नहीं लग पाए लेकिन गति से कभी थकान का
तुमको नजर नहीं लग जाए बहकी हुई बयार की
इस कारण कहता हूं तुमसे कभी न आना द्वार पर
इस काऱण कहता हूं तुमसे कभी न रोना हार पर।
प्रेषकः पं. सुरेश नीरव
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कभी न रोना हार पर।
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