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Tuesday, June 16, 2009

गुरु परब दी लख-लख बधाइयां।

शेर और चूहे ने काफी गदर मचाया हुआ है। राजमणिजी का व्यंग्य बहुत अच्छा लगा। मकबूलजी जो रोज इतने शेर कहते हों उन्हें चूहा कहने की हिमाकत कौन कर सकता है। मकबूलजी आपके जहन में तो ये विचार आना ही नहीं चाहिए। नीरवजी की गजल सुभान अल्लाह है। हंसजी प्रकट हुए अच्छा लगा। कर्नल विपिन चतुर्वेदी बहुत दिन से नहीं दिख रहे। क्या बात है? और अरविंद पथिकजी भी बिस्मिलजी को याद कर-कराके फिर भूमिगत हो गए।
गुरु परब दी लख-लख बधाइयां।
मधु चतुर्वेदी

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