मुझे नही मालूम था कि ब्लॉग पर सभी साथी चूहे और शेर को लेकर इतने चर्चा शील हो जायेंगे कि अपनी बहन जी का हाथी सिर्फ़ खुला मुहँ ले कर रह जायेगा। मकबूल साहिब आप तो मेरे बड़े भाई हाथी सरीखे है और मै ठहरा चूहा जो इधर -उधर कुतर कर अपना काम चलता हूँ । मकबूल जी आप को जो चूहा समझे , उसकी सोंच चूहे सरेखी है । खैर यह प्रसंग ब्लॉग पर कुछ मनोरंजन तो देगया... आज प्रवासी कवि त्रिनाद निवासी प्रो. हरिशंकर आदेश का गीत प्रस्तुत है
गीतों का भिखारी
मैं गीत माँगता फिरता हूँ
लहरों के आँगन में पागल
संगीत माँगता फिरता हूँ
हर गंध मुझे बहकाती है
मन के समीप आ जाती है
मैं कली-कली के द्वार पर
नित प्रीत माँगता फिरता हूँ ।
हर लहर लौटती चरण चूम
आती न हृदय तक कभी घूम
सागर के सूने कूलों से
मन-मीत माँगता फिरता हूँ
वह दूर क्षितिज मे घटा उठी
पर पवन-पराजित वहीं लुटी
हर लुटे हुए से जीवन की
नव रीत माँगता फिरता हूँ ।
हर मरघट हर नर-नारी से
हर पनघट हर पनिहारी से
हर रीति गागर से प्रतीति
नवनीत माँगता फिरता हूँ ।
हर तितली भ्रमर विलासी से
हर पीड़ा हर्ष उदासी से
हर शूल भरी पगडंडी से
मृदु गीत माँगता फिरता हूँ
प्रस्तुति -राजमणि
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