आदरणीय नीरवजी
आप व्लॉग पर ऐसी बातें मत लिखा और लिखवाया कीजिए कि पढ़ने के बाज छुट्टी लेने की इच्छा उसकी भी हो जाए जो लंच-बॉक्स लेकर दफ्तर जाने को तैयार हो चुका हो। आपकी तकरीर पढ़ने के बाद मन हो आया कि मैं भी छुट्टी कर डालूं मगर सोचा कि अगर आपकी तकरीर का ज्यादा असर पड़ गया तो हमेशा के लिए ही छुट्टी न हो जाए,इस डर के मारे दफ्तर चला आया हूं मगर दिल है कि मानता नहीं है। और लग रहा है कि आज तो आ गया मगर कल दफ्तर नहीं आऊं। यब सब आपका असर है जो जहन पर हावी हो रहा है। शकर धीरे-धीरे...मुहब्बत असर करती है धीरे-धीरे
भगवान सिंह हंस
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