कोई समझायेगा क्या राज़े- गुलशन
जब तक उलझे न काँटों से दामन।
यक- ब- यक सामने आना जाना
रुक न जाए कहीं दिल की धड़कन।
गुल तो गुल ख़ार तक चुन लिए हैं
फिर भी ख़ाली है गुलचीं का दामन।
कितनी आराइशे- आशियाना
टूट जाए न शाखे- नशेमन।
अज़्मते- आशियाना बढ़ा दी
बर्क़ को दोस्त समझूँ कि दुश्मन।
फ़ना निज़ामी
प्रस्तुति- मृगेन्द्र मकबूल
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