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Saturday, July 25, 2009

आज का इंसां


० राजमणी जी के सौजन्य से एक अच्छी रचना पढ़ने को मिली। शुक्रिया।
० मकबूलजी ने फना निजामी की ग़ज़ल पढ़वादी,उनको भी शुक्रिया।
० भगवान सिंह हंसजी को धन्यवाद,अग्रिम बधाई देने के लिए।
० एक ग़ज़ल पेशे खिदमत है
सलवटोंवाला बिछौना आज का इंसां
वासना का है खिलौना आज का इंसां
क्यों किसी शैतान की तीखी नज़र लगती
हो गया काला डिठौना आज का इंसां
धमनियों में है तपिश चढ़ती जवानी की
ढ़ूंढता है कोई कोना आज का इंसां
ओढ़ ली जबसे शराफत बेचकर ईमान
दूर से लगता सलौना आज का इंसां
नाचती है अब सियासत देश में नंगी
है मिनिस्टर-सा घिनौना आज का इंसां
पूरे आदमकद हुए हैं पाप के पुतले
और कितना होगा बौना आज का इंसां
आ गया नीरव चलन में कैसा तिरछापन
हो गया बिल्कुल तिकोना आज का इंसां।
पं. सुरेश नीरव

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