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Tuesday, July 21, 2009

हमें कुछ करना चाहिए।


मेरी आवा़ज़ सुनो
इंडिया इंटरनेशनल में आयोजित कार्यक्रम के संदर्भ में मैं तो इतना ही कहना चाहूंगा कि उस कार्यक्रम को नीरवजी का ही कार्यक्रम मानना उचित होगा क्योंकि बिना कार्ड के जितने भी श्रोता आए थे वह नीरवजी की फेसवेल्यू पर ही आए थे। जितने अतिथि आए थे वह भी नीरवजी के बुलाने पर ही आए थे। उनके लिए तो यह एक चुनौती थी कि दो दिन के नोटिस पर कार्यक्रम कर के दिखाएं,जिसमें कि वे खरे उतरे। और सचानजी ने इसकी तारीफ भी की। भाषण तो नीरवजी को आगे दे ही कौन पाता है। फिर भी उनकी विनम्रता यह कि मंच पर एक कोने में बैठ जाते हैं और अयोग्य लोग बीच में बैठते हैं। पर इससे किसी विद्वान को कुछ फर्क नहीं पड़ता है। नीरवजी उसकी मिसाल हैं। जिन लोगों ने अपने को जमाने की कोशिश की उनके लिए चांडालजी की टिप्पणी से मैं भी सहमत हूं।मैं दो मुद्दे उठाना चाह रहा हूं-
० नीरवजी ने जिस संकलन का संपादन किया है उसके लोकार्पण के लिए हम लोगों को सोचना चाहिए। कम-से-कम उन्हें जो इस संकलन में शामिल हैं।
० दूसरा१२ अगस्त को अनके पिताश्री दा.दा.चतुर्वेदी की सालगिरह है। हमें कुछ करना चाहिए।

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