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Thursday, July 30, 2009

न हारा है इश्क न दुनिया थकी है

न हारा है इश्क, न दुनिया थकी है
दिया जल रहा है, हवा चल रही है।

सुकूं ही सुकूं है, खुशी ही खुशी है
तेरा ग़म सलामत, मुझे क्या कमीं है।

चरागों के बदले मकां जल रहे हैं
नया है ज़माना, नई रौशनी है।

अरे ओ ज़फाओं पे चुप रहने वालो
खामोशी ज़फाओं की ताईद भी है।

मेरे राहबर मुझको गुमराह कर दे
सुना है कि मंज़िल क़रीब आ गई है।

ख़ुमार एक बालानोश तू और तौबा
तुझे ज़ाहिदों की नज़र लग गई है।
ख़ुमार बाराबंकवी
प्रस्तुति- मृगेन्द्र मकबूल

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