दंगाइयों की भीड़ थी पैग़ाम मौत का
बच कर निकल सका न वो जलते मकान से
घायल हुए वहाँ जो वो अपने ही थे तेरे
छूटा था बन के तीर तू किसकी कमान से
पागल उन्हें इसी पे ज़माने ने कह दिया
आँखों को जो दिखा वही बोले ज़बान से
`धृतराष्ट्र’ को पसंद के `संजय’ भी मिल गए
आँखों से देख कर भी जो मुकरे ज़बान से
बोले जो हम सभा में तो वो सकपका गया
`द्विज’ की नज़र में हम थे सदा बे—ज़बान—से
द्विजेन्द्र 'द्विज'
प्रस्तुति –राजमणि
1 comment:
बहुत ही सुन्दर रचना है जिसमे खुब्सूरत भाव है ......बधाई
Post a Comment