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Tuesday, July 28, 2009

व्हिस्की के संग मंगोड़े हों रिमझिम फुहार में

पं. सुरेश नीरवजी आपकी रामकहानी सुनी ब्वाग की जबानी बडी दुखद रही आपरी पहली बारिस। मुझे आपकी ही गजल के कुछ शेर याद आ रहे हैं,पेशेखिदमत हैं-
छत टपक रही है मेरे बूढ़े मकान की
बरसात लाई मुश्किलें सारे जहान की
बदल ती टंकियों से क्यों पानी टपक रहा
टोंटी चुराली क्या किसीने आसमान की
व्हिस्की के संग मंगोड़े हों रिमझिम फुहार में
फरमाइशें तो देखिए ठलुए जवान की।
मधु चतुर्वेदी

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