नीरवजी लोकमंगल के नए सदस्य बन रहे हैं यह ब्लॉग की लोकप्रियता को जताता है। आपकी व्यथा कथा पढ़ी पढ़कर दुख हुआ। मगर फिर आपकी हास्य गजले पढ़कर लगा कि आपने गम गलत कर ही लिया है फिर क्या दुख जताना? बहरहाल आपके कते और मकबूलजी की गजल अच्छी लगीं। मेरी कविता पर किसी ने कोई टिप्पणी नहीं की,आखिर क्यों? मुझे उम्मीद है कभी-न-कभी कहीं न कहीं कोई-न-कोई तो राय जताएगा। मुझको मेरी जगह बताएगा।
भगवान सिंह हंस
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