जब सभी लोग पश्यंती की कविताएं दे रहे हैं तो आज मैं भी पश्यंती के ही एक कवि डॉ. अमरनाथ अमर की कुछ पंक्तियां दे रहा हूं
कुछ लोगों के लिए शब्द
तनकर खड़े होने के लिए नहीं
पेट भरने का जरिया है
आज की उपभोक्ता संस्कृति में
बिकाऊ माल है,प्रोडक्ट है
अपनी जगह उनके मजमें
उनके करेक्टर के मजमून हैं
उन्होंने सिर्फ तालियां सुनी हैं
सृजन के दर्द को कहां भोगा है
सृजन के दर्द से उपजे सुख का आनंद
बंध्या और बंजर कहां जानते हैं
वे तो छारीय तल्ख बने रहने में
ही जीवन की सार्थकता मानते हैं।
पेशकारः चांडाल
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