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Friday, July 24, 2009

नीरवजी आपकी गजल बहुत अच्छी लगी, खासकर के यह शेर
ज़िंदगी के कोण का हम अंश देखेंगे
सभ्यता के सर्प का हम दंश देखेंगे
इस शेर में तो बहुत ही तंज़ है-
रहने लगे वातानुकूलित फ्लैट में रावण
अब महानगरों में लंका ध्वंस देखेंगे
देवकी को गर्भ से होगा न अब खिलवाड़
कृष्णवाली आंख से हम कंस देखेंगे
अपहरण सरकार का करने लगा आकाश
हर घड़ी आतंक का विध्वंस देखेंगे
और लगता है कि यह शेर तो आपने मुझ पर ही कह दिया है
तिकड़मों से है पराजित हर हुनर नीरव
पांव कौओं के दबाते हंस देखेंगे।
आपको बहुत बधाई।
भगवान सिंह हंस

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