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Wednesday, July 29, 2009


पं. . सुरेश नीरव
आज की आपकी ग़ज़ल बेहद-बेहद पाएदार ग़ज़ल है। मैं आपकी कलमऔर कलाम दोनों को सलाम करती हूं। खंडेलवालजी की रचना बहुत अच्छी है,इसके लिए भाऊ राजमणि को बधाई..अशोक मनोरम ने कुछ लिखना चाहा हा मगर बात पन नहीं सकी वे हमारे नए सदस्य हैं मैं उनका स्वागत करती हूं और चाहती हूं कि ज़रा दिल खोलकर लिखें। ऐसे काम नहीं चलनेवाला और प्रदीप शुक्ला तो लगता है क्लास में हाजिरी-सी लगाकर चले गए अरे भाई कुछ लिखो भी तो,दोखो मकबूलजी, नीरवजी,राजमणिजी किस तरह रोज़ लिख रहे हैं। सभी बंधुओं को जय लोक मंगल..
आपकी मधु

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