भाई हंस जी आपकी पालागन ने बेहद मज़ा दिया। आपकी पिछली रचना सिगरेट वाली भी सुंदर थी और उस पर मैंने और मधु जी ने टिप्पणी की थी। लगता है आप किसी टिप्पणी विशेष की प्रतीक्षा में थे लिहाज़ा उन टिप्पणियों को नज़र अंदाज़ कर गए। आज राजमणि जी ने पराग जी बेहद उम्दा ग़ज़ल प्रस्तुत की है। अशोक मनोरम जी अपनी पारी आज शुरू करदी है। खुश आमदीद।
आज मख़दूम मोईनुद्दीन की एक ग़ज़ल पेश है।
आप की याद आती रही रात भर
चश्मे- नम मुस्कराती रही रात भर।
रात भर दर्द की शम्मा जलती रही
ग़म की लौ थरथराती रही रात भर।
बांसुरी की सुरीली सुहानी सदा
याद बन बन के आती रही रात भर।
याद के चाँद दिल में उतरते रहे
चांदनी जगमगाती रही रात भर।
कोई दीवाना गलियों में फिरता रहा
कोई आवाज़ आती रही रात भर।
प्रस्तुति- मृगेन्द्र मकबूल
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