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Tuesday, July 28, 2009

मकबूलजी

पालागन
वो मंजर भी देखो यारो
कितना मनभावन होता है
जब छोटे और बड़ों के बीच
पालागन होता है

विजया की मस्त भवानी हो
मस्ती में डूबी वाणी हो
अलग दूघ और पानी हो
अलहड़ पन जब जीवन
जीने का साधन होता है
तब पालागन होता है

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