Search This Blog

Monday, July 6, 2009

मौत जिंदगी पर भारी है

मौत ज़िंदगी पर भारी है
पर क्या करिए लाचारी है।

छीन-झपट कर, लूट- कपट कर
बचे रहो तो हुशियारी है।

भरे पेट वालों में यारी
भूखों में मारा- मारी है।

परिवर्तन भी प्रायोजित हैं
और बगावत सरकारी है।

सुख को कुतर गए हैं चूहे
जीवन टूटी अलमारी है।

नदीम
प्रस्तुति- मृगेन्द्र मकबूल

No comments: