मौत ज़िंदगी पर भारी है
पर क्या करिए लाचारी है।
छीन-झपट कर, लूट- कपट कर
बचे रहो तो हुशियारी है।
भरे पेट वालों में यारी
भूखों में मारा- मारी है।
परिवर्तन भी प्रायोजित हैं
और बगावत सरकारी है।
सुख को कुतर गए हैं चूहे
जीवन टूटी अलमारी है।
नदीम
प्रस्तुति- मृगेन्द्र मकबूल
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