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Sunday, August 2, 2009

मधुओं की बहार

आज तो ब्लॉग पर दोनों मधुओं ने अपनी छटा बिखेर रखी है। दोनों रचनाएं सुंदर हैं। मधु चतुर्वेदी और नीरव जी को मधु मिश्रा की रचना प्रस्तुत करने के लिए साधुवाद। आज ज़ायका बदलने के लिए मैं भी एक गीत पेश करता हूँ।
हरी भरी सी क्यारियों में
बहता ठंडा पानी।
ओढ़ चुनरिया धानी नाचे
ऋतुओं की महारानी।
मौसम के स्वागत में पुरवा
बरखा बनके आ।
बादल तू दुल्हन की ख़ातिर
गीत नया फिर गा।

हरे भरे पर्वत नदियों से
करते छेड़ा खानी,
भंवरे तितली से बोले हैं
प्रीत प्यार की वाणी।
खुशबू के लफ्ज़ों में नगमे
तू सावन के गा,
मौसम के स्वागत में पुरवा
बरखा बनके आ।

आंखों के वीराने में तू
सपने नए सजा,
प्राणों में राधा के कान्हा
मुरली आ के बजा।
मौसम के स्वागत में पुरवा
बरखा बनके आ,
बादल तू दुल्हन की ख़ातिर
गीत नया फिर गा।
मृगेन्द्र मकबूल

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