दरबारी मरासिम का किसे होश है भैया
कुटिया में सुदामा की चले आए कन्हैया
कुछ ख़ून के कुछ ख़ाक के होते हैं तक़ाज़े
क्या जान से प्यारी न थी टीपू की रूक़ैया
कुर्बां तिरे होटों पे हैं जन्नत के शिगूफ़े
सदक़े तिरी क़ामत पे उतरती है सुरैया
दो रोज़ भी शाख़ों से जुड़े रह नहीं सकते
पतझड़ को बहुत भाता है फूलों का रवैया
उर्दू तो बहरहाल ग़ज़लयाब मिलेगी
लाहौर हो बंगाल हो या झुमरीतलैया
हाज़िर हूँ तिरे ज़हरे-कुदूरत को पचाने
बिस्मिल्लाह मिरे दोस्त मिरे प्यारे ततैया
दौलत से 'सलीम' अपने सितारे नहीं मिलते
टिकता ही नहीं है मिरे हाथों में रुपैया
- सरदार सलीम
हैदराबाद, आन्ध्रप्रदेश
प्रस्तुतकर्ता : राजमणि
4 comments:
aapaki lekhani ke liye kuchh kahana surj ko diya dikhane jaisa mujhe lag raha hai ......
bahut khoob...
nihaal kar diya......
उर्दू तो बहरहाल ग़ज़लयाब मिलेगी
लाहौर हो बंगाल हो या झुमरीतलैया
हाज़िर हूँ तिरे ज़हरे-कुदूरत को पचाने
बिस्मिल्लाह मिरे दोस्त मिरे प्यारे ततैया
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बहुत बढिया लिखा है बधाई।
दो रोज़ भी शाख़ों से जुड़े रह नहीं सकते
पतझड़ को बहुत भाता है फूलों का रवैया
बहुत खूब कहा है...वाह...
नीरज
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