
राजमणिजी ,सरदार सलीम की ग़ज़ल बहुत उम्दा है और मकबूलजी का गीत नए तेवर में है। कर्नल विपिन चतुर्वेदीजी का खाली नाम दिखा है,वह भी बहुत दिनों बाद। लगता है कुछ लिखा होगा और मैटर उड़ गया है।ऐसा भी होता है ब्लॉग की ज़िंदगी में। वैसे उन्होने फोन करके बताया है कि वे आजकल नाटक लिख रहे हैं और मेदिकल की किताबों बहुत व्यस्त हैं साथ ही ८० साल की उम्र में नई नोकरी ऐक डेंटल कॉलेज मैं बतौर डॉक्टर ज्वाइन कर ली है। उन्हें बधाई। आज में भी मकबूलजी से मुतासिर होकर एक गीत ही लिख रहा हूं
हँसते अनुप्रास मिले सांसों के वृंदावन में
खिल-खिलाते ही रहे छंद तेरी आंखों के
शोक दामन में कँवारी संध्या के
झिलमिलाते ही रहे बंद तेरी बांतों के
रूप की धूप खिली देह के विंध्याचल में
गुनगुने जिस्म ङुए गंधभरी पांखों के
मुक्तक-सा झरता निमिष-निमिष प्यार तेरा
छंद हुए और मुखर बातूनी रातों के
गुनगुनाती है हवा श्लोक तेरे गातों को
खिलखिलाते ही रहे छंद तेरी बातों के
मेंहदी रचे पृष्ठों पर सोनाली हाथों के
हँसते हैं हस्ताक्षर प्यार भरी सांसों के
खालीपन सम्माटा संसंस्मरण प्यासों के
दहका गए चिंगारी जंगल में बांसों के
जैसे चंदन है जिए दंश लिए सांपों के
खिलखिलाते ही रहे छंद तेरी बातों के।
पं. सुरेश नीरव
हँसते अनुप्रास मिले सांसों के वृंदावन में
खिल-खिलाते ही रहे छंद तेरी आंखों के
शोक दामन में कँवारी संध्या के
झिलमिलाते ही रहे बंद तेरी बांतों के
रूप की धूप खिली देह के विंध्याचल में
गुनगुने जिस्म ङुए गंधभरी पांखों के
मुक्तक-सा झरता निमिष-निमिष प्यार तेरा
छंद हुए और मुखर बातूनी रातों के
गुनगुनाती है हवा श्लोक तेरे गातों को
खिलखिलाते ही रहे छंद तेरी बातों के
मेंहदी रचे पृष्ठों पर सोनाली हाथों के
हँसते हैं हस्ताक्षर प्यार भरी सांसों के
खालीपन सम्माटा संसंस्मरण प्यासों के
दहका गए चिंगारी जंगल में बांसों के
जैसे चंदन है जिए दंश लिए सांपों के
खिलखिलाते ही रहे छंद तेरी बातों के।
पं. सुरेश नीरव
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