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Monday, August 3, 2009

तू देश का शासक नहीं गद्दार है-गद्दार है।

नीरवजी आपका गीत,माजमणिजी द्वारा भेजी सरदार सलीम की गज़ल और मकबूलजी का गीत देखकर मन हुआ कि एक कविता मैं भी प्रेषित कर दूं....
आज मेरा देश लारा जल रहा है हर दिशा में
आग की लपटें भयंकर सर्पिणी-सी आज डसती है मेरे आकाश को
धंध चारों ओर जो छाया हुआ विष का धुआं
है मिटाता-सा है मेरी हर आस को
जवानी जख्म खाकर भी हवा में झूलती है
कहानी जख्म खाकर ङी हवा में झुलती है
कहा किसने कि आकर तुम संभालो इस वतन को
जिस वतन की जिंदगी अपने खुदा को भूलती है
गर तुझे ना रहा आवाम से यदि प्यार है
तू देश का शासक नहीं गद्दार है-गद्दार है।
प्रस्तुतिः भगवान सिंह हंस

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