सावन में सूख कर के जो अचार हो गए
भादों में फूल कर के वे सरदार हो गए।
तालू से िचपक जीभ थी गरमी में सूखती
नाले की सफाई तो अब व्यापार हो गए।
बीवी ने कह िदया था सरेशाम आ जाना
दफ्तर में पीए साथ थी, हम पार हो गए।
छतरी नहीं थी पास, औ घर से िनकल पड़े
इस आशकी मौसम में हम बीमार हो गए।
अल्ला करे ऐसी फुहारें रोज अब बरसे
गरमी के मारे घर में बीवी कार हो गई।
अशोक मनोरम
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3 comments:
वाह ...वाह ..वाह
बहुत बढ़िया लगा।
आगे भी लिखते रहें।
बधाई।
भाई वाह क्या बात है, इस सुहावने मौसम मे लाजवाब रचना, इस मौसम को और रगिंन बनाता हुआ।
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