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Friday, August 21, 2009

आज की बरसात पर एक गजल

सावन में सूख कर के जो अचार हो गए
भादों में फूल कर के वे सरदार हो गए।
तालू से िचपक जीभ थी गरमी में सूखती
नाले की सफाई तो अब व्यापार हो गए।
बीवी ने कह िदया था सरेशाम आ जाना
दफ्तर में पीए साथ थी, हम पार हो गए।
छतरी नहीं थी पास, औ घर से िनकल पड़े
इस आशकी मौसम में हम बीमार हो गए।
अल्ला करे ऐसी फुहारें रोज अब बरसे
गरमी के मारे घर में बीवी कार हो गई।
अशोक मनोरम

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3 comments:

अनिल कान्त said...

वाह ...वाह ..वाह

शिवम् मिश्रा said...

बहुत बढ़िया लगा।
आगे भी लिखते रहें।
बधाई।

Mithilesh dubey said...

भाई वाह क्या बात है, इस सुहावने मौसम मे लाजवाब रचना, इस मौसम को और रगिंन बनाता हुआ।