जो पत्थर काटकर सबके लिए पानी जुटाता है
उसे पानी नहीं मिलता पसीने में नहाता है
लगा रहता है जो हर दिन किसी का घर बनाने में
उसी को घर नहीं होता उसे मौसम सताता है
जुता रहता है बैलों की तरह जो खेत में दिन भर
उसी का अपना बच्चा भूख से आँसू बहाता है
बनाए जिसके धागों से बने हैं आज ये कपड़े
उसी का तन नहीं ढँकता कोई गुड़िया सजाता है
जलाता है बदन कोई हमेशा धूप में 'घायल'
ज़रा-सी गर्मी लगने पर कोई पंखा चलाता है
आदमी को भला और क्या चाहिए
ज़िंदगी में किसी की दुआ चाहिए
आसमाँ को जो धोखा हुआ इसलिए
बादलों को ज़मीं से वफ़ा चाहिए
पेड़ पर पंछियों को भरोसा नहीं
टहनियों को नया घोंसला चाहिए
तितलियों को परागों की है जुस्तजू
फूल को खुशबुओं का सिला चाहिए
जाने मौसम को किसकी नज़र लग गई
आज पुरवाई को भी हवा चाहिए
दरिया भरके जहाँ बन गईं बस्तियाँ
रास्तों को वहाँ रास्ता चाहिए
प्रस्तुति –राजमणि
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