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Monday, August 24, 2009

राजेन्द्र प्रसाद पासवान घायल की गज़लें

जो पत्थर काटकर सबके लिए पानी जुटाता है
उसे पानी नहीं मिलता पसीने में नहाता है

लगा रहता है जो हर दिन किसी का घर बनाने में
उसी को घर नहीं होता उसे मौसम सताता है

जुता रहता है बैलों की तरह जो खेत में दिन भर
उसी का अपना बच्चा भूख से आँसू बहाता है


बनाए जिसके धागों से बने हैं आज ये कपड़े
उसी का तन नहीं ढँकता कोई गुड़िया सजाता है

जलाता है बदन कोई हमेशा धूप में 'घायल'
ज़रा-सी गर्मी लगने पर कोई पंखा चलाता है




आदमी को भला और क्या चाहिए
ज़िंदगी में किसी की दुआ चाहिए

आसमाँ को जो धोखा हुआ इसलिए
बादलों को ज़मीं से वफ़ा चाहिए

पेड़ पर पंछियों को भरोसा नहीं
टहनियों को नया घोंसला चाहिए

तितलियों को परागों की है जुस्तजू
फूल को खुशबुओं का सिला चाहिए

जाने मौसम को किसकी नज़र लग गई
आज पुरवाई को भी हवा चाहिए

दरिया भरके जहाँ बन गईं बस्तियाँ
रास्तों को वहाँ रास्ता चाहिए






प्रस्तुति –राजमणि

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