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Friday, August 21, 2009

हौसला अफजाई का शुक्रिया

मेरा मानना है कि रचना अगर दिल की गहराइयों से निकले तो वो दिलों तक ज़रूर पहुँचती है। मैं शुक्र गुज़ार हूँ रंजना जी, कविता जी और महेंद्र मिश्र जी का जिन्होंने मेरी ग़ज़ल को सराहा। ये सराहना हमारे लिए टॉनिक का काम करती है। आज मोइन अहसान
हम दहर के इस वीराने में जो कुछ भी नज़ारा करते हैं
अश्कों की ज़बां में कहते हैं, आहों से इशारे करते हैं।
ऐ मौज़े- बला, उनको भी ज़रा दो चार थपेड़े हलके से
कुछ लोग अभी तक साहिल से तूफां का नज़ारा करते हैं।
क्या जानिए, कब ये पाप कटे, क्या जानिए वो दिन कब आए
जिस दिन के लिए, इस दुनिया में, क्या कुछ न गवारा करते हैं।
क्या तुझको पता, क्या तुझको ख़बर, दिन- रात ख़यालों में अपने
ऐ काकुले-गेती हम तुझको दिन रात संवारा करते हैं। जज़्बी की एक ग़ज़ल पेश है।


मृगेन्द्र मकबूल