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Saturday, August 29, 2009

मौसमे- बरसात

भाई अशोक मनोरम जी की तरह पर प० सुरेश नीरव ने बढिया ग़ज़ल कही है। इस से उत्साहित हो कर एक शेर कहने का अपना भी मूड बन गया। मुलाहिजा हो।
मौसमे- बरसात में सब कुछ अच्छा लगता है
पहनी थी पतलून मगर अब कच्छा लगता है।
मृगेन्द्र मक़बूल

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