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Monday, August 31, 2009

चतुर्वेदी से चौबे बने

भाई munindr नाथ ने यातायात समस्या की ओर हम ब्लॉगर बांधवों का ध्यान आकृष्ट किया है और समस्या का समाधान भी बताया है। मगर समस्या ये है कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे गा। यहाँ तो सब अपनी बला दूसरों के सर पर डालने में माहिर हैं। आज एक हज़ल पेश है।
भौहें चढ़ी हुई हैं चेहरा भी लाल है
जलवों का उस के देखिए कैसा जमाल है।

अख़बार जब से देख लिया जोहराजबीं ने
संसद कि तरह हो रहा घर में धमाल है।

कश्मीर है तुम्हारा या हमारे बाप का
पुश्तों से नहीं सुलझा ये ऐसा सवाल है।

रिश्वत के जुर्म में जो बर्खास्त हो गया
रिश्वत खिला के हो गया फिर से बहाल है।

हासिल फ़तह मक़बूल इन्हें हो या फिर उन्हें
मुर्गे को हर इक हाल में होना हलाल है।
मृगेन्द्र मक़बूल

1 comment:

निर्मला कपिला said...

बहुत बडिया हज़ल है बधाई