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Wednesday, September 2, 2009

इस तरह हर ग़म भुलाया कीजिए

इस तरह हर ग़म भुलाया कीजिए
रोज़ मयखाने में आया कीजिए।

छोड़ भी दीजे तकल्लुफ़ शेख़ जी
जब भी आएँ पी के जाया कीजिए।

जिंदगी भर फिर न उतरेगा नशा
इन शराबों में नहाया कीजिए।

ऐ हसीनो, ये गुज़ारिश है मेरी
अपने हाथों से पिलाया कीजिए।
हसरत जयपुरी
प्रस्तुति- मृगेन्द्र मक़बूल

4 comments:

Udan Tashtari said...

ऐ हसीनो, ये गुज़ारिश है मेरी
अपने हाथों से पिलाया कीजिए।

-बहुत आभार हसरत जयपुरी जी की रचना पढ़वाने का.

अर्चना तिवारी said...

बहुत उम्दा ग़ज़ल..आभार

aarya said...

सुरेश जी
सादर वन्दे!
मै इस पर क्या टिप्पणी करूँ, मै अभी छोटा हूँ, लेकिन अपनी बुद्धि के हिसाब से यही कहूँगा कि.......
लाख बुरी हो मय लेकिन, सही है उसकी एक बात
भुलाना गम को गर हो तो, कोई नशा करो
नशा मय ही नहीं है केवल इस दुनिया में ऐ दोस्त,
नशा तो प्यार भी है, केवल तुम उसका नशा करो.
रत्नेश त्रिपाठी

अपूर्व said...

खूबसूरत गजल बाँटने के लिये शुक्रिया