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Thursday, September 3, 2009

हस्तीमल ’हस्ती’

सिर्फ ख़यालों में न रहा कर
ख़ुद से बाहर भी निकला कर
लब पे नहीं आतीं सब बातें
ख़ामोशी को भी समझा कर
उम्र सँवर जाएगी तेरी
प्यार को अपना आईना कर
जब तू कोई कलम खरीदे
पहले उनका नाम लिखा कर
सोच समझ सब ताक पे रख दे
प्यार में बच्चों सा मचला कर

ग़म नहीं हो तो ज़िंदगी भी क्या
ये गलत है तो फिर सही भी क्या
सच कहूँ तो हज़ार तकलीफ़ें
झूठ बोलूँ तो आदमी भी क्या
बाँट लेती है मुश्किलें अपनी
हो न ऐसा तो दोस्ती भी क्या
चंद दानें उड़ान मीलों की
हम परिंदों की ज़िंदगी भी क्या
रंग वो क्या है जो उतर जाए
जो चली जाए वो खुशी भी क्या

चिराग हो के न हो दिल जला के रखते हैं
हम आँधियों में भी तेवर बला के रखते हैं
मिला दिया है पसीना भले ही मिट्टी में
हम अपनी आँख का पानी बचा के रखतें हैं
बस एक ख़ुद से ही अपनी नहीं बनी वरना
ज़माने भर से हमेशा बना के रखतें हैं
हमें पसंद नहीं जंग में भी चालाकी
जिसे निशाने पे रक्खें बता के रखते हैं
कहीं ख़ूलूस कहीं दोस्ती कहीं पे वफ़ा
बड़े करीने से घर को सजा के रखते हैं

टूट जाने तलक गिरा मुझको
कैसी मिट्टी का हूँ बता मुझको
मेरी ख़ुशबू भी मर न जाये कहीं
मेरी जड़ से न कर जुदा मुझको
घर मेरे हाथ बाँध देता है
वरना मैदां में देखना मुझको
अक़्ल कोई सज़ा है या इनआम
बारहा सोचना पड़ा मुझको
हुस्न क्या चंद रोज़ साथ रहा
आदतें अपनी दे गया मुझको
देख भगवे लिबास का जादू
सब समझतें हैं पारसा मुझको
कोई मेरा मरज़ तो पहचाने
दर्द क्या और क्या दवा मुझको
मेरी ताकत न जिस जगह पहुँची
उस जगह प्यार ले गया मुझको

ज़िंदगी से नहीं निभा पाया
बस यही एक ग़म रहा मुझाको

प्रस्तुति –राजमणि

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