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Sunday, December 27, 2009
नई किताबें
आइए बात करें एक साहित्यिक पत्रिका की-
संवदिया
(सर्जनात्मक साहित्यिक त्रैमासिकी)
संपादक-भोला पंडित प्रणयी
अतिथि संपादक-देवेन्द्र कुमार देवेश
संपर्क-संवदिया प्रकाशन, जयप्रकाश नगर, वार्ड नं. 7, अररिया बिहार
ईमेल-samvadiapatrika@yahoo.com
राशि-
एक अंक-30 रुपये
सालाना-80 रुपये ।
आज के दौर में जबकि इस तरह की साहित्यिक पत्रिकाओं की संख्या दिनोंदिन कम हो रही है, इस समय में साहित्य की डोर पुरजोर ढंग से संभाले हुए लगातार पिछले 6 सालों से पत्रिका-संवदिया अपने सुंदर त्रैमासिक कलेवर में सज-संवरकर छप रही है, इस अंक के साथ पत्रिका का यह छठे वर्ष का पहला अंक नवलेखन अंक है ।
पत्रिका का प्रस्तुत अंक अक्टूबर-दिसंबर 2009, श्री देवेन्द्र कुमार देवेश जी के अतिथि संपादन में बहुत ही सुंदर-कलात्मक ढंग से अपने में साहित्य की हर विधा को सुमोए हुए है ।
इस अंक में कई कवियों की कविताएं शामिल हैं जिनमें प्रमुख हैं- पंकज चौधरी, श्याम चैतन्य, हरेराम सिंह, कल्लोल चक्रवर्ती, देवेन्द्र कुमार देवेश, अनुप्रिया, स्मिता झा, अरुणाभ तथा कुमार सौरभ आदि । कहानियां हैं संजीव ठाकुर, उमाशंकर सिंह, और संजयकुमार सिंह आदि की ।
पत्रिका के इस अंक में किताबों की अच्छे से समीक्षाएं की हैं- रंजना जायसवाल ने झौआ बैहार, जो कि संजीव ठाकुर का लिखा उपन्यास है, की समीक्षा की है । तो युवा कवि एवं पत्रकार हरे प्रकाश उपाध्याय ने श्याम चैतन्य के कविता संग्रह -अनित्य तत्व सिद्धि में जगत की समीक्षा बहुत ही अच्छे ढंग से की है ।
संवदिया पत्रिका में प्रथम प्रतिक्रिया हैं- ज्योतिष जोशी, विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, सुरेन्द्र स्निग्ध और देवशंकर नवीन आदि ।
आइए अब बात करें पत्रिका में शामिल सामग्री के कुछेक अंशों पर - इस अंक की एक कविता ए लड़की-(कवि-देवेन्द्र कुमार देवेश) के ये अंश देखिए-
ए लड़की !
सोचता हूं जब भी मैं तुम्हारे और अपने बारे में
तो सोचता हूं उस रिश्ते की बाबत
जो हम दोनों के परिचय से बना है हमारे बीच
और उस रिश्ते के बारे में भी
जैसा यह दुनिया हमारे बीच सोचती है ।
इसी अंक में शामिल कवि हरे राम सिंह की कविता बसंत के आगमन की सूचनाएं की इन पंक्तियों को देखें-
तुम्हारे गदराए यौवन
और ये कस उभार
बसंत के आगमन की सूचनाएं हैं।
उड़ती तितलियाँ और गुगुनाते भौंरे
और मेरे मन की हिलोरें
संवाद स्थापित कर कहती हैं-
तुम आ रही हो ।
इसी तरह एक से बढ़कर एक कविताएं, कहानियां, लघुकथाएं, समीक्षाएं आम पाठक को साहित्य के सागर में गोते लगवाने को भरपूर दम रखे इस अंक में हैं ।
प्रदीप कुमार शुक्ला
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