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Sunday, December 27, 2009

आँख जब बंद किया करते हैं

आँख जब बंद किया करते हैं
सामने आप हुआ करते हैं।

आप जैसा ही मुझे लगता है
ख्वाब में जिस से मिला करते हैं।

तू अगर छोड़ के जाता है तो क्या
हादसे रोज़ हुआ करते हैं।

नाम उनका, न कोई उनका पता
लोग जो दिल में रहा करते हैं।

हमने राही का चलन सीखा है
हम अकेले ही चला करते हैं।
सईद राही
प्रस्तुति- मृगेन्द्र मक़बूल

4 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत खूब!!




यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।

हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.

मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.

निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

आपका साधुवाद!!

शुभकामनाएँ!

समीर लाल
उड़न तश्तरी

RAJNISH PARIHAR said...

बहुत अच्छा लिखा है आपने..मेरी शुभकामनायें

अनिल कान्त said...

वाह !

Maqbool said...

bhai samir lal ji, aapke sujhaav atyant mahatvpoorn hain.ham is vishay me aapas me paraamarsh kar kuchh n kuchh zaroor karenge.sujhaav ke liye dhanyvaad.
saath hi bhai ranish parihar aur anil kant kaa bhi shukriyaa.
maqbool