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Tuesday, December 29, 2009

आज हम बिछड़े हैं तो कितने रंगीले हो गए

आज हम बिछड़े हैं तो कितने रंगीले हो गए
मेरी आंखें सुर्ख़, तेरे हाथ पीले हो गए।

कब की पत्थर हो चुकी थीं, मुंतज़िर आंखें मगर
छू के देखा तो मेरे भी हाथ गीले हो गए।

जाने क्या एहसास, साज़े- हुस्न के तारों में है
जिनको छूते ही मेरे नगमे रसीले हो गए।

अब कोई उम्मीद है शाहिद न कोई आरज़ू
आसरे टूटे तो जीने के वसीले हो गए।
शाहिद क़बीर
प्रस्तुति- मृगेन्द्र मक़बूल

3 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत आभार इस प्रस्तुति का.


नववर्ष की बहुत बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ!

समीर लाल
उड़न तश्तरी

निर्मला कपिला said...

आज हम बिछड़े हैं तो कितने रंगीले हो गए
मेरी आंखें सुर्ख़, तेरे हाथ पीले हो गए।

कब की पत्थर हो चुकी थीं, मुंतज़िर आंखें मगर
छू के देखा तो मेरे भी हाथ गीले हो गए।
लाजवाब बधाई नये साल की बहुत बहुत मुबारक

Maqbool said...

bhai sameer laji aurr nirmala kapila ji, donon ko shuriyaa. nayaa saal aap donon ko bahut sukhdaai aur mangalmay ho.
maqbool