Search This Blog

Tuesday, January 5, 2010

विनोद तिवारी की गजले


आज कई दिनों बाद नेट देवता प्रसन्न हुए है परन्तु पूरा सहयोग नहीं दे रहे है । खैर आज साथियों को भाई विनोद तिवारी की कुछ गजले पेश कर रहा हूँ -
रात रोते हुए कटी यारो
अब भी दुखती है कनपटी यारो
हमने यूँ ज़िंदगी को ओढ़ा है
जैसे चादर फटी-फटी यारो
शक की बुनियाद पर टिका है शहर
दोस्त करते हैं गलकटी यारो
भूख में कल्पना भी होती है
फ़ाख़्ता एक परकटी यारो
किससे मजबूरियाँ बयान करें
जीभ तालू से जा सटी यारो
चुप्पियों की वजह बताएँगे
वक़्त से गर कभी पटी यारो
********************
टूटती है सदी की ख़ामोशी
फिर कोई इंक़लाब आएगा
मालियो! तुम लहू से सींचो तो
बाग़ पर फिर शबाब आएगा
सारा दुख लिख दिया भविष्यत को
मेरे ख़त का जवाब आएगा
आज गर तीरगी है किस्मत में
कल कोई आफ़ताब आएगा

******************
राजमणि

1 comment:

अजय कुमार झा said...

राजमणि जी , विनोद जी की खूबसूरत गज़लें पढवाने के लिए आभार