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Tuesday, January 5, 2010

नव वर्ष शुभ हो

काबू के बाहर के कारणों से उचित समय पर आप हजरात से मुखातिब न होसका। गुनाहगार हूँ और क्षमा का तलबगार हूँ। इस गुनाह की तलाफी में चाँद अशआर पेश हैं। मकबूल साहब अगर हिमायत समझें तो इस्लाह की ज़हमत फरमाएं। आदाब। अर्ज़ है,
इस जोपड़े से दूर चलो,मत रहो येहाँ।
कीड़े मकोड़े हों नहीं, बदबू न हो जहां।
बगीचे में कुकुरमुत्ते इस क़दर बढ़ गए हैं।
गुलाब बोने होकर ज़मीनसे लग गए हैं।
मालिओं ने अपना सब ज्ञान खोदिया है ।
निर्माण की फसल में विध्वंस बोदिया है ।
आम आदमी को सलीब पर तो चदाया है ,
पर उसे किसीने खुदा नहीं बनाया है ।
लिआकात नहीं हो पास तो सियासत सम्हालिए
सिक्के नहीं हों पास तो नारे उछालिये।
विपिन चतुर्वेदी १९८६, तोब्रुक, लीबया

1 comment:

Udan Tashtari said...

नये वर्ष की शुभकामना!